Bhavaprakashika

HKS 1: Mangalacharana Sandhi

 || हरे श्रीनिवास हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ||

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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथाम्रुतसर

. मंगळाचरण सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

श्रीर-मणि कर — कमल- पूजित ।

चारु- चरण स — रोज- ब्रह्म स- ।

मीर- वाणि फ — णींद्र- वींद्र भ — वेंद्र- मुख विनु-त ॥ नीर-ज भवां — डोद-य स्थिति ।

कार-णनॆ कै — वल्य-दायक ।

नार-सिंहनॆ — नमिपॆ-करुणिपु — दॆमगॆ-मंगळ-व ॥ १-१ ॥

जगदु-दरनति — विमल-गुणरू- ।

पगळ-नालो — चनदि- भारत ।

निगम-ततिगळ — तिक्र-मिसि क्री — या वि-शेषग-ळ ॥

बगॆ- बगॆय-नू — तनव- काणुत ।

मिगॆ- हरुष-दिं — पॊगळि- हिग्गुव ।

त्रिगुण-मानि म — हाल-कुमि सं — तैस-लनुदिन-वु ॥ १-२ ॥

निरुप-मानं — दात्म-भव नि- ।

र्जर स-भा सं — सेव्य- ऋजु गण- ।

दरसॆ- सत्व — प्रचुर-वाणी — मुख स-रोजे-न ॥

गरुड- शेष श — शांक- दळ शे- ।

खरर- जनक ज — गद्गु-रुवॆ त्व- ।

च्चरण-गळिगभि — वंदि-सुवॆ पा — लिपुदु- सन्मति-य ॥ १-३ ॥

आरु- मूरॆर — डॊंदु-साविर ।

मूरॆ-रडु शत — श्वास- जपगळ ।

मूरु-विध जी — वरॊळ-गब्जज — कल्प- परियं-त ॥

ता र-चिसि सा — त्वरिगॆ-सुख सं- ।

सार- मिश्ररि — गधम- जनरिग- ।

पार- दुःखग — ळीव-गुरु पव — मान- सलहॆ-म्म ॥ १-४ ॥

चतुर- वदनन — राणि- अतिरो- ।

हित-विमल वि — ज्ञानि- निगम ।

प्रतति-गळिगभि — मानि-वीणा — पाणि- ब्रह्मा-णि ॥

नतिसि- बेडुवॆ — जननि- लक्ष्मी- ।

पतिय- गुणगळ — तुतिपु-दकॆ स- ।

न्मतिय- पालिसि — नॆलॆसु-नी मद् — वदन- सदनद-लि ॥ १-५ ॥

कृति-रमण-प्र — द्युम्न – नंदनॆ ।

चतुर-विंशति — तत्व-पति दे- ।

वतॆग-ळिगॆ गुरु — वॆनिसु-तिह मा — रुतन- निजप-त्नि ॥ सतत-हरियलि — गुरुग-ळलि स- ।

द्रतिय-पालिसि — भाग-वत भा- ।

रत पु-राण र — हस्य-तत्वग — ळरुपु-करुणद-लि ॥ १-६ ॥

वेद-पीठ वि — रिंचि- भव श- ।

क्रादि- सुर वि — ज्ञान- दायक ।

मोद- चिन्मय — गात्र-लोक प — वित्र- सुचरि-त्र ॥ छेद- भेद वि — षाद- कुटिलां- ।

तादि- मध्य वि — दूर- आदा- ।

नादि- कारण — बाद-रायण — पाहि- सत्रा-ण ॥ १-७ ॥

क्षितियॊ-ळगॆ मणि — मंत- मॊदला- ।

दति दु-रात्मरु — ऒंद-धिक विं- ।

शति कु-भाष्यव — रचिसॆ- नडुमनॆ — यॆंब- ब्राह्मण-न ॥ सतिय- जठरदॊ — ळवत-रिसि भा- ।

रति र-मण म — ध्वाभि-धानदि ।

चतुर-दश लो — कदलि-मॆरॆद — प्रतिम-गॊंदिसु-वॆ ॥ १-८ ॥

पंच- भेदा — त्मक प्र-पंचकॆ ।

पंच- रूपा — त्मकनॆ- दैवक ।

पंच- मुख श — क्रादि-गळु किं — कररु- श्रीहरि-गॆ ॥ पंच- विंशति — तत्व- तरतम ।

पंचि-कॆगळनु — पेळ्द- भावि वि-।

रिंचि- यॆनिपा — नंद-तीर्थर — नॆनॆवॆ-ननुदिन-वु ॥ १-९ ॥

वाम-देव वि — रिंचि-तनय उ- ।

मा म-नोहर — उग्र- धूर्जटि ॥

साम-जाजिन — वसन- भूषण — सुमन-सोत्तं-स ॥ काम-हर कै — लास- मं-दिर ।

सोम-सूर्या — नल वि-लोचन ।

कामि-तप्रद — करुणि-सॆमगॆ स — दा सु-मंगळ-व ॥ १-१० ॥

कृत्ति-वासनॆ — हिंदॆ- नी ना- ।

ल्वत्तु- कल्प स — मीर-नलि शि- ।

ष्यत्व- वहिसखि — ळाग-मार्थग — ळोदि- जलधियॊ-ळु ॥ हत्तु- कल्पदि–तपव- गैदा- ।

दित्य-रॊळगु — त्तमनॆ-निसि पुरु- ।

षोत्त-मन परि — यंक- पदवै — दिदॆयॊ- महदे-व ॥ १-११ ॥

पाक-शासन — मुख्य- सकल दि- ।

वौक-सरिगभि — नमिपॆ- ऋषिगळि- ।

गेक-चित्तदि — पितृग-ळिगॆ गं — धर्व- क्षितिपरि-गॆ ॥

आ क-मलना — भादि- यतिगळ ।

नीक-कानमि — सुवॆनु- बिडदॆ र- ।

माक-ळत्रन — दास-वर्गकॆ — नमिपॆ-ननवर-त ॥ १-१२ ॥

परिम-ळवु सुम — नदॊळ-गनलनु ।

अरणि-यॊळगि — प्पंतॆ- दामो- ।

दरनु- ब्रह्मा — दिगळ- मनदलि — तोरि- तोरद-लॆ ॥

इरुति-ह जग — न्नाथ- विठलन ।

करुण- पडॆव मु — मुक्षु- जीवरु ।

परम- भागव — तरनु- कॊंडा — डुवुदु- प्रतिदिन-वु ॥ १-१३ ॥

॥ इति श्री मंगळाचरण सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्रीः ॥

🙏 ॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥  🙏