|| हरे श्रीनिवास । हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ||
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पवमान पवमान
पवमान पवमान जगद प्राण संकरुषण भवभयारण्य दहन |प|
श्रवणवॆ मॊदलाद नवविध भकुतिय तवकदिंदलि कॊडु कविगळ प्रिय |अ.प|
हेम कच्चुट उपवीत धरिप मारुत कामादि वर्ग रहित
व्योमादि सर्वव्यापुत सतत निर्भीत रामचंद्रन निजदूत
याम यामकॆ निन्नाराधिपुदकॆ कामिपॆ ऎनगिदु नेमिसि प्रतिदिन
ई मनसिगॆ सुखस्तोमव तोरुत पामर मतियनु नी माणिपुदु || 1 ||
वज्र शरीर गंभीर मुकुटधर दुर्जनवन कुठार
निर्जर मणिदया पार वार उदार सज्जनरघव परिहार
अर्जुनगॊलिदंदु ध्वजवानिसि निंदु मूर्जगवरिवंतॆ गर्जनॆ माडिदि
हॆज्जॆ हॆज्जॆगॆ निन्न अब्ज पादद धूळि मार्जनदलि भव वर्जितनॆनिसॊ || 2 ||
प्राण अपान व्यानोदान समान आनंद भारति रमण
नीनॆ शर्वादि गीर्वाणाद्यमररिगॆ ज्ञानधन पालिप वरेण्य
नानु निरुतदलि एनेनॆसगिदॆ मानसादि कर्म निनगॊप्पिसिदॆनॊ
प्राणनाथ सिरिविजयविठलन काणिसि कॊडुवदु भानु प्रकाश || 3 ||