Bhavaprakashika

Bhavaprakashika

Pavamana Pavamana

 || हरे श्रीनिवास हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ||

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पवमान पवमान

पवमान पवमान जगद प्राण संकरुषण भवभयारण्य दहन |प|

श्रवणवॆ मॊदलाद नवविध भकुतिय तवकदिंदलि कॊडु कविगळ प्रिय |अ.प|

हेम कच्चुट उपवीत धरिप मारुत कामादि वर्ग रहित

व्योमादि सर्वव्यापुत सतत निर्भीत रामचंद्रन निजदूत

याम यामकॆ निन्नाराधिपुदकॆ कामिपॆ ऎनगिदु नेमिसि प्रतिदिन

ई मनसिगॆ सुखस्तोमव तोरुत पामर मतियनु नी माणिपुदु || 1 ||

वज्र शरीर गंभीर मुकुटधर दुर्जनवन कुठार

निर्जर मणिदया पार वार उदार सज्जनरघव परिहार

अर्जुनगॊलिदंदु ध्वजवानिसि निंदु मूर्जगवरिवंतॆ गर्जनॆ माडिदि

हॆज्जॆ हॆज्जॆगॆ निन्न अब्ज पादद धूळि मार्जनदलि भव वर्जितनॆनिसॊ || 2 ||

प्राण अपान व्यानोदान समान आनंद भारति रमण

नीनॆ शर्वादि गीर्वाणाद्यमररिगॆ ज्ञानधन पालिप वरेण्य

नानु निरुतदलि एनेनॆसगिदॆ मानसादि कर्म निनगॊप्पिसिदॆनॊ

प्राणनाथ सिरिविजयविठलन काणिसि कॊडुवदु भानु प्रकाश || 3 ||

🙏 ॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥  🙏